Friday, May 13, 2022

मुद्दों की खेती में बेरोजगारी के साथ सौतेला व्यवहार : प्राज / Step-motherly dealing with unemployment in cultivating issues


                             (व्यंग्य) 

चुनावी सीज़न का ग्रैंड प्रीमियर पुनः दस्तक देने को तैयार है। भारतीय उपमहाद्वीप में चुनाव का पर्व प्रत्येक वर्ष किसी ना किसी राज्य के विधानसभा के गठन के लिए होता है। दौड़ते-भागते नेताओं के बीच आम आदमी वहीं मैंगो पीपल जिन्हें मुद्दों के बवंडरों के बीच मसलकर चुस लिया जाता है। कभी जातिवाद, कभी धर्म, कभी इतिहास, कभी सवर्ण-दलित के खंडन से वोटों के बिसात का समीकरण जोड़ लिया जाता है। कुछ तो ऐसे भी हैं जो वादों के पुलिंदे से वोटों के समीकरण में बड़े अंतर का जीत दर्ज करने में माहिर हो गए हैं। जीत के बाद की स्थिति पर 1967 में आई फिल्म उपकार का एक गीत मुझे याद आता है। जिसे इंदवर ने कुछ ऐसे लिखा है, 'कसमें वादे प्यार वफा सब बातें हैं बातों का क्या?... कोई किसी का नहीं ये झूठे नाते हैं नातों का क्या?' लगभग इस गीत के तरानों के साथ सियासतदान कुंडली मार कर कुर्सी पर बैठ जाते हैं।
             पॉलिटिक्स के कैरेक्टरों का कैरेक्टराइजेशन का उद्देश्य नहीं है। वास्तव में पुरा फोकस बेरोजगारी पर, जिन राजनीति पृष्ठभूमि पर मुद्दों की खेती होती है। वहाँ क्षेत्रीयता, भाषावाद, रंगवाद, जातिवाद, भेद -विभेद यहाँ तक की इतिहास में दफ्न गड़े मुद्दों को बाहर निकालकर वैमनष्यता परोसने की तैयारी कभी ये दल कभी वो दल कर रहे हैं। कुल मिलाकर कहें तो इस दल-दल के राजनिति में बेरोजगारी के मुद्दे वाली फसल पर किसी ध्यान नहीं है। वर्तमान में ट्रेंडिंग पर जात, धर्म की रार है, लोगों की तकरार है। इस मुद्दे के समीकरण में जीत की चमक, फिर एक बार है। फिर काहे ओवरकॉस्टिंग वाली परम्परागत बेरोजगारी की खेती की ओर ध्यान दिया जावे? यह मानसिकता प्रत्येक दल के नेतृत्वकर्ता के समझ में कील सी ठुकी है।
        किसी वरिष्ठ नेता ने कनिष्ठ के कान खींचें की युवाओं की बेरोजगारी के मुद्दे क्यों नहीं उगा रहे हो? कनिष्ठ ने भी बड़ी चतुराई से जवाब दिया की जो भाई-भाई की लड़ाई में व्यस्त है। जो अतीत के स्वरों में वर्तमान खो रहे हैं। जिन्हें खूद नहीं पता की बेरोजगारी के भावी परिणाम क्या होंगे? जो खूद ही एमबीए गुपचुप सेंटर चलाकर उद्यमिता के गीत गा रहे हैं। जो स्वयं ही भूल गए हैं। उन्हें काहे याद दिला रहे हैं। वरिष्ठ हो गए हैं आप, कृपया रिटायर्ड जीवन के उत्सव लिजीएगा। राजनीति में जब तक जीत के फसलें विभाजन, विभावना की नीति कारगर है। फिर काहे रोजगार के अवसरों पर माथापच्ची लगायेंगे?


लेखक
पुखराज प्राज 
छत्तीसगढ़