Friday, May 13, 2022

बारिश के पानी मे बढ़ते अम्लीय स्तर से भावी समस्याओं की दस्तक : प्राज/ Rising acidic level in rain water knocks future problems



                             (चिंतन

दिनचर्या के आवाजाही में हम रोज़ पेट्रोलियम ईँधनों का उपयोग हमारी गाड़ियों में करते हैं। बढ़े वायु प्रदूषण के कारकों में यह बड़ा कारण है। चुकीं ये वाहन भारी मात्रा में धूएं के रूप में कार्बन , सल्फर डाईऑक्साइड और नाईट्रोजन डाईऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं। यही धूआँ वातावरण में फैलता है। जलीय संसाधन सहित विभिन्न संसाधनों में मिल जाते हैं। जैसे जलवाष्प होने के प्रक्रिया से मेंघों का निर्माण एवं पून: वर्षा के रूप में उसी संगठित जलवाष्प में घुले ये कार्बनिक और अन्य प्रदूषक तत्व गिरने लगते हैं। इस स्थिति को विज्ञान की भाषा में अम्लीय वर्ष कहा जाता है। क्योंकि जो तत्व वाष्प में संगठित होते हैं वो जल के वास्तविक स्वरूप को परिवर्तित कर अम्लीयता से परिपूर्ण कर देता है। यह वर्षा प्राकृतिक रूप से ही अम्लीय होती है। इसका कारण यह है वायुमंडल में सल्फर डाइआक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जल के साथ क्रिया करते हैं और नाइट्रिक अम्ल सहित गंधक का तेजाब बनाते हैं।
          तर्क कीजिये की वर्षा के रूप में जो जल सीधे तौर पर पर्यावरण के विभिन्न स्वरूपों पर गिरता है। गंधकाम्ल या तेजाब के रूप पर्यावरण के विभिन्न फलकों पर असर डालती है। अम्लवर्षा के कारण जलीय प्राणियों की मृत्यृ खेंतो और पेड़-पौधों की वृद्धि में गिरावट की स्थिति का कारण है। इसके साथ तांबा और सीसा जैसे घातक तत्वों का पानी में मिल जाने से भारी दुष्परिणाम के रूप में प्रकृति के प्रतिकूल व्यावहार को देख सकते है।
                अम्लीयता से परिपूर्ण जल का प्रकृति के विभिन्न अवयवों पर क्षरण देखे जा सकते हैं। जिसमें जीव-जंतूओं के साथ-साथ समस्त जैविक-अजैविक चरों को गंभीर स्वरूप से प्रभावित करते हैं। अम्ल पदार्थो तथा संरचनाओं को दुर्बल करने में सहायक हैं जो मार्बल लाइमस्टोन सैंडस्टोन आदि से निर्मित बिल्डिंग आर्किटेक्चर को क्षति पहुचाते है।अम्लीयता के बढ़ने से कृषि उत्पादकता में भारी गिरावट की स्थिति निर्मित होने लगी है। अम्लीयता सॉइल माइक्रोबियल फौना तथा नाइट्रोजन फिक्सेशन को भी प्रभावित करती है। मृदा रसायन में परिवर्तन होने से उरवर्कता क्षीणता की ओर बढ़ने लगी है जो जीवन के भावी संभावनाओं को उदासीनता की ओर ढ़केलने की प्रयास कर रही है।
                पर्यावरण के संरक्षण के लिए जागरूक लोगों के द्वारा कई मुहिम चलाए जा रहें हैं। लेकिन वास्तविकता के धरातल जब तक लोगों में प्रकृति के संरक्षण के लिए स्वमेव आगे नहीं आएंगें और लोगों के द्वारा नित्य हो रहे प्रकृति के दोहन और अतिक्रमण को कम करना पड़ेगा नहीं तो निश्चय है की वह दिन दूर नहीं है। जब प्रकृति का संतुलन पूर्णतः प्रतिकूल हो जायेगा। और विरान ग्रह के रूप में सौर मंडल के चक्कर काटने वाले अन्य ग्रहों की भांति पृथ्वी भी जीवन विहीन बनने को अग्रसर होगी। 



लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़