Friday, May 13, 2022

बंद आलमारी में घुटन महसूस करती किताबों सी व्यथाएं : प्राज / Books feeling suffocated in a closed cupboard


                   (अभिव्यक्ति) 


मर्म तेरे-मेरे पन्नें दर पन्नों में आजाद करते गए। 
अनुभवों के बवंडरों को हम,किताब करते गए।

अर्रे...! अर्रे...! मेरी कहानी हैं। कोई धक्का मुक्की नहीं करो। मेरी कहानी है तो सूनाने का हम मुझे ही दिया जाये तो ज्यादा श्रेयस्कर होगा! तो शुरू से शुरू करते हैं। मैं वह विचार हूँ जिसे समझ के रूप में देखें तो सूचना, चिंतन के रूप में संज्ञान लें तो दर्शन, तकनिक के समीकरणों में साध्य करें तो नवाचार, बौद्धिक स्वरूप में आकृति दें तो अद्यतन और मित्र की संज्ञा में एक लम्बी यात्रा हूँ। वह विचार हूँ जो लेखक की मन में उभरकर, हृदय से भावनाओं को जोड़ते हुए। मस्तिष्क के विचारों के समानांतर, लेखनी से होते हुए पन्नों में कैद किया गया, किताब बोल रहा हूँ। 
             सबसे पहले जोहान्स गटेनबर्ग ने पन्नों में विचारों को कैद करने के तरिके से पुस्तक का आविष्कार किया। तेजी से लोगों में विचारों के संचार दावानल की भांति हो, इसलिए उन्होंने प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार करते हुए पुस्तक का आविष्कार किया। मिस्र से ग्रीस में 650 पापीरस स्क्रॉल पेश किया गया। वही 400-300 रेशम लेखन सामग्री चीन में नियोजित हुई। प्रारंभिक दौर के साथ-साथ किताबों का संरक्षण संग्रहालयों के जिम्मेदारी में रहा। जंजीरों में जकड़ कर, कभी कपड़ों में लपेटकर धूल से बचाकर रखा जाता था। कुछ दौर-ए-परिवर्तन के भी आये। कुछ व्यावसायिक उत्थल-पुथल के दौर में विचारों, सूचनाओं और नव सृजन से लब्धित किताबों के बड़े  मार्केट तैयार हो गए।
              व्यावसायिक हुए तो पुस्तकों से पहचान के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानक आईएसबीएन पहचान प्रारूप 1967 में तैयार किया गया था। जो 1966 में बनाए गए 9-अंकीय मानक बुक नंबरिंग पर आधारित रहा ।जो 10-अंकीय आईएसबीएन प्रारूप को अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन द्वारा विकसित किया गया था और 1970 में अंतर्राष्ट्रीय के रूप में प्रकाशित कर दिया गया। अब हर विचारों का एक अलग पहचान और उस विचार के संग्रहण के लिए प्रतिलिप्यधिकार भी मिलने लगा। शनैः -शनैः ही सहीं समय के पहियों ने रफ़्तार तो पकड़ ली। वह उत्कृष्ट दौर भी रहा जब पुस्तकों को पढ़ने के लिए होड़ मच गई। जैसे पुस्तकों के अंदर यात्रा करने वालों की लम्बी कतारें लगने लगी। फिर डिजिटलीकरण के दौर में लोगों का पुस्तकालय और पुस्तकों की ओर ध्यानाकर्षण कम होने लगा। मोबाइल और इंटरनेट को ई-बुक, ऑडियो बुक्स और वर्चुअल स्टोरीज़ संसाधनों ने मनुष्यों के पुस्तक पठन संस्कृति का विनाश कर दिया। ई-बुक्स में फाइंडिंग टैक्स्ट ऑप्शन ने मनुष्यों को मतलब की चीजें ढूढ़ने के परम्परा का मतलबीपन सीखा दिया।
             इधर अध्ययनों से पता चलता है कि पढ़ने से हमारा दिमाग बढ़ता है। यह अल्जाइमर्स और डिमेंशिया के बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा कर सकता है क्योंकि किताब पढ़ने से मस्तिष्क बढ़ता है। इसलिए यह मस्तिष्क की शक्ति को खोने से रोकता है। किताब पढ़ने से आपकी संज्ञानात्मक उत्तेजना पर उतना ही प्रभाव पड़ता है जितना शतरंज खेलने या पहेली को सुलझाने से पड़ता है।तनाव से रहित, स्मरण शक्ति, आत्मविश्वास और विश्लेषणात्मक बुद्धि के विकास में सहायक पुस्तक पठन की परम्परा का आज भी अद्वितीय स्थान है। लेकिन एकाग्रता के पृष्ठभूमि पर शून्यता की ओर अग्रसर होते लोगों के पठन संस्कृति से पृथक् होना। किताबों के लिए भा पड़ा, अब किताबें नहीं करती है बातें बीते जमानों, गमों की, बमों की। अब किताबें कैद होने लगीं है बंद आलमारियों में और सिर्फ शो-केस बनकर किताब के पन्नों में उकेरे मर्म की स्थिति दम घुटन महसूस करने के समान है। 



लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़