(विचार)
हम डिजिटल युग में जी रहें हैं, जहां सूचनाओं का विस्फोट हो रहा है। लोगों में सूचनाओं के मांग के साथ-साथ सूचनाओं को जन्म देने वालों के बीच छद्म युद्ध भी जारी है। यह युद्ध आपसी टकराव की नहीं अपितु, सूचनाओं की उपलब्धता में तेज-तर्रार तरिके से वृहद स्तर पर लोगों के बीच उजागर करने का अनुसंधान है। नव सूचनाओं के सृजन से लेकर लोगों तक पहुँचाने में कठिन परिश्रम का खर्च होता है। जैसे हम किसी उपस्कर को क्रय से लेकर उसके उपभोग तक लाने के पश्चात् स्वयं के संम्पति के रूप में उसका चिन्हांकन करते हैं। जिसका उपभोग, संरक्षण एवं समय के साथ अद्यतनीकरण बनाये रखते हैं। ठीक उसी प्रकार सूचनाओं, किसी आकड़ों का बौद्धिक रूप में सृजन भी बौद्धिक संपदा कहलाती है।
सामण्ड बौधिक संपदा को परिभाषित करते हुए कहते हैं की, 'वे अभौतिक वस्तुएं बौद्धिक संपदा है जो विधि द्वारा मानव प्रवीणता और श्रम के अभौतिक उत्पाद के रूप मे मान्यता प्राप्त करती है।' तात्पर्य यह है की वह निर्माण जिसका आधार बौद्धिक दक्षताओं पर निर्भर करता है। जिसका उपयोग, उपभोग एवं सूचनात्मक रूप में लोगों के बीच रखने का अधिकार स्वमेव उस संपदा के जनक को होता है। सरल शब्दों में कहें तो बौद्धिक सम्पदा किसी व्यक्ति विशेष या संगठित रूप से स्थापित संस्था द्वारा सृजित कोई संगीत, साहित्यिक रचना, कला, अनुसंधान, पहचान, नामांकन, चित्र, प्रतिकृति, प्रतिलिप्यधिकार, ट्रेडमार्क, पेटेन्ट आदि को कहा जाता है। जिस तरह किसी भौतिक संपदा का स्वामी होता है, उसी प्रकार कोई बौद्धिक सम्पदा का भी स्वामित्व अधिकार होता है। अधिकार रखने वाला अपने बौद्धिक सम्पदा के उपयोग का नियंत्रण रख सकता हैं। और उसका उपयोग करके भौतिक सम्पदा बना सकते हैं। इस तरह से बौद्धिक सम्पदा के अधिकार के कारण उसकी सुरक्षा होती है। लोग इन सूचनाओं के खोज तथा नवाचार के लिये उत्साहित और उद्यत रहते हैं।
ब्लैक स्टोन अपने परिभाषित स्वरूप में व्याख्या करते हुए कहते हैं की,'अन्य मूर्त संपत्तियों की भांति बौद्धिक संपदा है। जिसका स्वरूप अमूर्त होता है। उसको राज्य के विधि के माध्यम से संपत्ति सामान्य व्याख्या के अंतर्गत मान्यता प्रदान की है।' शब्द संपदा एवं शब्द संपत्ति एक दूसरे के समानार्थकस शब्द हैं। जिसका तात्पर्य बुद्धि संबंधित से अर्थात बुद्धि अथवा मस्तिष्क द्वारा पैदा की गई या उत्पादित की गई वस्तु जिसे कोई व्यक्ति अपने बौद्धिक श्रम से उत्पादित करता है। वह शब्द संपदा उस व्यक्ति की बौद्धिक संपदा होती है। यदि साधारण बोलचाल की भाषा में कहें तो ऐसी वस्तु जिसे कोई व्यक्ति अपनी बुद्धि से उत्पन्न करता है।उसका स्वयं स्वामित्व अधिकार रखता है।
बौधिक संपदा के संदर्भ में अगर आप पूर्ण समझ चुके हैं तो लक्षित विषय की ओर आपका ध्यानाकर्षण करना चाहूँगा। सूचनाओं के अनुसंधान में लगे कुछ तथाकथित शोधार्थियों प्लेगरिज्म की ओर बढ़ने लगे हैं। विश्वकोश इसी संदर्भ में कहती है, 'किसी दूसरे की भाषा, विचार, उपाय, शैली आदि का अधिकांशतः नकल करते हुए अपने मौलिक कृति के रूप में प्रकाशन करना साहित्यिक चोरी यानी प्लेगरिज्म कहलाती है।'
वर्तमान खासकर यह देखने को मिल रहा है लोगों को इंस्टेंट बेनिफिट और जल्दबाजी में अपनी बौधिकता साबित करने के लिए होड़ मची हुई है। गौरतलब है की इसी आतुरता के चलते वे किसी अन्य के द्वारा किए गए बौधिक सृजनकार्यों को तोड़ मरोड़कर अपने पांडित्य का बखान करने में लगे हैं। इससे उनके बौधिक स्तर का विवर्तन तो तो होता हैं, साथ में जो उनको अनुसरण करते है। उससे एक ऐसी पीढ़ी का जन्म होने लगा है जो कॉपी-पेस्ट की परम्परा के अग्रज बनने की ओर बढ़ चले हैं। ऐसा नहीं है की प्लेगरिज्म रोकने के लिए प्रयास नहीं हो रहे हैं। लेकिन प्लेगरिज्म में लिप्त लोग ही प्लेगरिज्म जाँच करने वाले उपकरणों का उपयोग करके चोरी पकड़ने वाले स्थानों को परिवर्तित कर ऐसे साक्ष्य प्रस्तुत कर रहें हैं की उनके कार्यों में जाँच के दौरान शून्य प्लेगरिज्म प्रदर्शित होता है। यह स्थिति सृजन कार्य को मार्ग में बाधक तो हैं साथ में नवज्ञान के सृजन के पहलुओं को भी बंद कर रहे हैं।
हमारा उद्देश्य बौधिक संपदा का सृजन होना चाहिए। जिसके लिए प्रायोजित यदि पूर्व में कार्य हुए हों, तो उनका उपयोग अपने साक्ष में संदर्भ के संसाधनों के रूप में उन्हें विकृति कर अपने नाम पर पेटेंट करने की परम्परा कभी भी सार्थक नहीं है। कॉपीराइट या पेटेंट जिन संपदाओं का होता है उनकी कॉपी के लिए लोग डरते हैं। लेकिन जिन बौधिक संपदाओं का कोई प्रमाणिक रिकार्ड नहीं है उनका भी सम्मान हमें अवश्य करना चाहिए।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़