Wednesday, February 16, 2022

मार्क्सवाद बनाम माओवाद : लेखक प्राज / Marxism Vs Maoism


                     (विश्लेषण


सर्वप्रथम बात करते हैं मार्क्सवाद या मार्क्सवादी विचारधारा क्या है? मनुष्य जो सामाजिक उत्पादन करते हैं, उसमें वे निश्चित संबंधों में प्रवेश करते हैं जो अपरिहार्य और उनकी इच्छा से स्वतंत्र होते हैं, उत्पादन के संबंध जो उनकी उत्पादन की भौतिक शक्तियों के विकास के एक निश्चित चरण के अनुरूप होते हैं। उत्पादन के इन संबंधों का कुल योग समाज की आर्थिक संरचना का निर्माण करता है, वास्तविक नींव, जिस पर एक कानूनी और राजनीतिक अधिरचना उत्पन्न होती है, और जो सामाजिक चेतना के निश्चित रूपों से मेल खाती है। भौतिक जीवन में उत्पादन का तरीका जीवन की सामाजिक, राजनीतिक और बौद्धिक प्रक्रियाओं के सामान्य चरित्र को निर्धारित करता है। यह पुरुषों की चेतना नहीं है जो उनके अस्तित्व को निर्धारित करती है; इसके विपरीत उनका सामाजिक अस्तित्व ही उनकी चेतना को निर्धारित करता है।
          साधारण शब्दों में कहें तो मार्क्सवाद टोटल इक्वलिटी या सभी की समानता पर आधारित आदर्शक सिद्धांत है। एक छोटे से नमुने से उदाहरण प्रस्तुत करना चाहूंगा कि, यदि किसी कुल या समूह में यदि किसी व्यक्ति ने सेब खाने की इच्छा जाहिर की तो, समस्त उस निकाय के लोगों को सेब से भरे टोकरी प्रस्तुत की जावे यदि इच्छा हो तो वो भी एक सेब का चयन कर सकते हैं। कहने का तात्पर्य है, आर्थिक, सामाजिक और राजनीति समस्त स्वरूप में समानता होना ही यह मार्क्सवाद है। 
           इसी कड़ी में एक विचारधारा है लेनिनवाद, इसकी परिभाषा में स्टालिन कहते हैं, लेनिनवाद साम्राज्यवाद और सर्वहारा क्रांति के युग का मार्क्सवाद होने के साथ-साथ सर्वहारा की तानाशाही की सैद्धांतिकी और कार्यनीति है। कहने का तात्पर्य है समानता तो निश्चित है लेकिन जो परिश्रमी वर्ग हैं यदि उनके द्वारा संगठित और क्रांतिक विचारों का होना भी आवश्यक है। पहली दृष्टि में साफ-सुथरा और तर्कसंगत लगने वाला यह ढाँचा कम्युनिस्ट आंदोलन के भीतर और बाहर काफी विवादित रहा है। लेनिन की समकालीन सिद्धांतकार रोज़ा लक्ज़ेमबर्ग ने भी इसकी आलोचना की थी, हालाँकि वे बोल्शेविकों की आम कार्यदिशा से सहमत थीं।
         माओ से-तुंग या माओ ज़ेदोंग चीनी क्रान्तिकारी, राजनैतिक विचारक और साम्यवादी दल के नेता थे जिनके नेतृत्व में चीन की क्रान्ति सफल हुई। उन्होंने ने प्रसिद्ध दो सुत्र दिये। जो मार्क्सवाद और लेनिनवाद का समेकित स्वरूप है। उसके अनुसार, 'राजनैतिक सत्ता बन्दूक की नली से निकलती है। और राजनीति रक्तपात रहित युद्ध है और युद्ध रक्तपात युक्त राजनीति।' यही सिद्धांत आगे चलकर भारत में माओवादी विचारधारा के रूप में जन्मा। माओवाद (1960-70 के दशक के दौरान) चरमपंथी अतिवादी माने जा रहे बुद्धिजीवी वर्ग का या उत्तेजित जनसमूह की सहज प्रतिक्रियावादी सिद्धांत है। माओवादी राजनैतिक रूप से सचेत सक्रिय और योजनाबद्ध काम करने वाले दल के रूप में काम करते है। उनका तथा मुख्यधारा के राजनैतिक दलों में यह प्रमुख भेद है कि जहाँ मुख्य धारा के दल वर्तमान व्यवस्था के भीतर ही काम करना चाहते है वही माओवादी समूचे तंत्र को हिंसक तरीके से उखाड़ के अपनी विचारधारा के अनुरूप नयी व्यवस्था को स्थापित करना चाहते हैं।  


लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़