Friday, June 26, 2020

नशा( कविता): कवि प्राज

रचनाकार:- पुखराज प्राज
           छत्तीसगढ़
शीर्षक:- नशा 
अलंकार- सभंग यमक अलंकार
कविता:-


जीव न जीवन को समझा। 
ना समझा वह तनिक ज्ञान।१

है बसी ज्यों मदिरा मन में, 
उरबसी हो जैसे उर बसी।२

 लागे शर्म ना आए शर्माना। 
कहे निट्ठल्ले एक है घराना।३

चार हो या पांच कौड़ी धन, 
आओ मिलकर है इसे उड़ाना।४

पी-पीकर, फूकेंगे इक दिन, 
कहे मदिरालय का दीवाना।५


.            *प्राज*


अलंकार अवलोकन:-

०१. पहली पंक्ति में- "जीव न" और जीवन
०२. चौथी पंक्ति में "उरबसी" और "उर बसी" (यहां पर उरबसी यानी उर्वशी और उर बसी यानी हृदय में बसी) 

०३. पांचवे पंक्ति में "शर्म ना" और "शर्माना"